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महाराष्ट्र में 4 माह के भीतर 808 अन्नदाताओं ने गले लगाई मौत, बीते साल से फिर भी 88 कम..

प्रतिकात्मक फोटो

समरनीति न्यूज, डेस्कः सरकार के लाख दावे के बावजूद किसानों का आत्महत्या करने का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है। इस साल जनवरी से अप्रैल तक में महाराष्ट्र में  808 किसानों ने आत्महत्या की है। इस लिहाज से चार किसान रोजाना आत्महत्या कर रहे थे। हालांकि यह पिछले साल के शुरुआती चार महीने के आंकड़ों से 88 कम है। पिछले साल अप्रैल तक 896 किसानों ने खुदकुशी की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के विदर्भ में इस साल सर्वाधिक किसानों ने आत्महत्या की।

पिछला साल रहा है चुनौतीपूर्ण  

अप्रैल के अंत तक यहां किसानों की आत्महत्या के 344 मामले सामने आए। महाराष्ट्र में जल का संकट चरम पर है। जल संकट से जूझ रहे मराठवाड़ा में 269 किसानों ने, उत्तरी महराष्ट्र में 161 और पश्चिमी महाराष्ट्र में 34 किसानों ने आत्महत्या की है। कोंकण क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या का कोई मामला सामने नहीं आया है। राज्य में 2018-2019 का साल किसानों के लिए बहुत चुनौतिपूर्ण रहा।

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महाराष्ट्र की 42 फीसदी तालुकाएं सूखे का सामना कर रही हैं।  इस सूखे ने राज्य के 60 फीसदी किसानों का प्रभावित किया है, इससे बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं। देवेन्द्र फडवीस सरकार ने 2017 में कर्जमाफी का ऐलान किया था। इस साल की शुरुआत में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान निधि सम्मान योजना का ऐलान किया था, जिसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये की आर्थिक राशि मुहैया कराई जानी है।

मानसून देरी से आया तो बढ़ेगी समस्या

किसानों को मानसून से ही थोड़ी-बहुत राहत मिलने की उम्मीद है। राज्य के किसान नेताओं का कहना है कि देरी से आया मानसून राज्य में लंबी अवधि के लिए कृषि संकट की स्थिति को और बदत्तर कर सकता है।

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किसान सभा के नेता अजीत नवाले ने कहा, ‘अभी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सूखे और पानी का संकट  है, जिसने फसलों को चौपट कर दिया और दूध का उत्पादन घटा दिया। यदि मानसून देरी से आया तो मवेशियों के लिए चारे का संकट गहरा सकता है। अधिकारियों का कहना है कि महाराष्ट्र में 17 जून को मानसून के दस्तक देने की संभावना है। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि मानसून के आने तक पर्याप्त मात्रा में चारा और पानी उपलब्ध है।