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बुंदेलखंडः बांदा में इलाज के नाम पर बर्बरता की भेंट चढ़ गया दुर्लभ प्रजाति का हिरन, मौत

बांदा के तिंदवारी पशु चिकित्सा केंद्र में घायल खून से लतपत हिरन के सींगों पर पैर रखकर बैठा वनरक्षक व रस्सी से जकड़कर इलाज करते फार्मासिस्ट।

समरनीति न्यूज, बांदाः जिस काले हिरन को मारने के लिए अभिनेता सलमान खान कई सालों से अदालत के चक्कर काट रहे हैं वही काले हिरन बुंदेलखंड में वनविभाग की लापरवाही की भेंट चढ़ रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में वनविभाग की लापरवाही से बांदा के तिंदवारी वनक्षेत्र में एक दुर्लभ प्रजाति के हिरन की उचित इलाज के अभाव में मौत हो गई। बताते हैं कि इस हिरन को आवारा कुत्तों ने दौड़ाया था जिसके बाद भागता हुआ यह हिरन किसानों द्वारा खेतों के चारों ओर लगाए गए कटीले तारों की चपेट में आकर घायल हो गया। घायलवस्था में हिरन को देखकर गांव के लोगों ने इसकी सूचना 100 नंबर पर पुलिस को दी। पुलिस ने पहुंचकर उसे तिंदवारी के वनविभाग के वनरक्षक राजेंद्र प्रसाद के सिपुर्द कर दिया।

वनविभाग के लोग गंभीर रूप से घायल हिरन को नहीं ले गए मुख्यालय, तिंदवारी में ही फार्मासिस्ट से कराई इलाज की खानापूर्ति 

मामला वनदरोगा राम प्रसाद की जानकारी में था। वनरक्षक हिरन को तिंदवारी के पशु चिकित्सका केंद्र में लेकर पहुंचा। जबकि हिरन की हालत गंभीर थी और उसे बेहतर इलाज की जरूरत थी। इसके बावजूद उसे बांदा मुख्यालय नहीं ले जाया गया। ग्रामीणों का कहना है कि तिंदवारी में ही उसके इलाज की खानापूर्ति चलती रही। इलाज के दौरान बरती गई घोर अनियमितता और बर्बरता के चलते हिरन ने आखिरकार वनविभाग की सिपुर्दगी में दम तोड़ दिया। हिरन की मौत से सकते में आए वनविभाग के अधिकारियों ने उसका पोस्टमार्टम कराने की बात कही है लेकिन गंभीर हालत में हिरन को तिंदवारी से बांदा के बड़े पशुचिकित्सालय में क्यों नहीं ले जाया गया ? इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है। हिरन के इलाज के दौरान की कुछ ह्रदय विदारक तस्वीरें सामने आई हैं जो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही हैं।

तिंदवारी में इलाज के कुछ देर बाद दम तोड़ने वाले हिरन का कीचड़ में पड़ा शव।

वन विभाग के लोगों ने हिरन का इलाज पशु चिकित्सालय (तिन्दवारी) में तैनात फार्मासिस्ट जग प्रसाद यादव से कराया। पशु चिकित्सक रामलखन कुशवाह अस्पताल में मौजूद नहीं थे। पता करने पर बताया कि बाहर किसी काम से गए हुए हैं। ऐसे में फार्मासिस्ट ने इलाज शुरू किया। इलाज के दौरान हिरन को कब्जे में करने के लिए पशु चिकित्सका विभाग के फार्मासिस्ट और वन विभाग के कर्मचारियों ने बर्बरता दिखाई। बिना उचित उपकरणों के इलाज शुरू किया गया और बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया गया। घायल हिरन को जमीन पर ही बांधकर डाल दिया गया।

सींगों पर पैर रख और रस्सी से जकड़कर जमीन पर ही खून से लतपत हिरण का किया इलाज, बेरहमी से हुई खानापूर्ति  

इलाज करते हुए डरे-सहमे गंभीर रूप से घायल और दर्द से कराहते हिरन के सींगों पर पैर रखकर उसे दबाया गया। एक सिंग पर पैर रखा गया तो दूसरे सींग को हाथ से खींचकर रखा गया। इलाज के दौरान मिट्टी पर ही लिटा दिया गया। न कोई कपड़ा बिछाया गया और न ही कोई स्ट्रैचर या कोई दूसरी व्यवस्था की गई। आसपास मौजूद ग्रामीणों का कहना था कि इलाज सही हो जाता तो हिरन बच सकता था लेकिन जिस तरह से हिरन का इलाज किया गया, उससे तो उसके बचने की संभाना भी खत्म हो गई। इलाज के बाद वनदरोगा राम प्रसाद हिरन को मुंगुस नर्सरी ले गए। उनका कहना था कि घायल हिरण को स्वस्थ होने तक वन विभाग अपनी देख-रेख में रखेगा। लगभग 3 बजे वन दरोगा ने बताया कि घायल हिरन की मौत हो गई है और उसका पोस्टमार्टम कराया जा रहा है।

 

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