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जान लेता ही नहीं, कभी-कभी बचाता भी है “शक” – नाटक शक

नाटक शक के मंचल के दौरान अभिनय करते कलाकार।

समरनीति न्यूज, कानपुरः ‘हम सिर्फ ये एक्टिंग इसलिए कर रहे थे कि मैं तुम्हारे खोये हुए प्यार को दोबारा हांसिल कर सकूं और तुम पहले की तरह एकदम सही हो जाओ। देखों तुम्हारा शक ही हमारे प्रेम की ताकत बन गया।’ अपने प्रेम की परख का एहसास कराते इन ये भावनात्मक शब्द हिस्सा हैं नाटक ‘शक’ का। जिसका मंचन बीती देर शाम राघवेंद्र स्वरूप आडिटोरियम में किया गया।

नाटक शक के मंचल के दौरान अभिनय करते कलाकार।

इस नाटक की खास बात यह है कि इसमें सिर्फ चार केंद्रीय पात्रों ने अपने अभियन से दर्शकों को बांधे रखा। नाटक की थीम में दिखाया गया कि एक हादसे में पति अपाहिज हो जाता है और धीरे-धीरे महसूस करने लगता है कि उसकी पत्नी का झुकाव उसके करीबी दोस्त की ओर हो रहा है।

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वह दोनों पर शक करने लगता है। एक दिन वह दोनों को एक साथ पकड़ लेता है। लेकिन बाद में पता चलता है कि यह शक उसको जानबूझकर कराया जा रहा था ताकि उसका प्रेम फिर से अपनों के प्रति बढ़े। वह खुद को कमजोर न समझे।

नाटक शक के मंचल के दौरान अभिनय करते कलाकार।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर जिलाधिकारी विजय पंत शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि साहित्य और कला में वह शक्ति है जो समाज में एक व्यापक बदलाव ला सकती है। नाटक का निर्देश राघव त्रिपाठी ने किया।

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नाटक में पत्नी की किरदार निभा रहीं कानपुर की ही रंगकर्मी आकांक्षा शुक्ला ने कहा कि यह नाटक पूरी तरह से पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। कार्यक्रम का संचालन रंजना यादव ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप दिवेदी, मृदुल पांडे, सीमा जैन, राजीव भाटिया, गणेश तिवारी आदि मौजूद रहे।