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‘सिर मुड़ाते ओले पड़े,’ वाले हालात से गुजर रहे ओम प्रकाश राजभर, हाल ही में तोड़ा था बीजेपी से रिश्ता..

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व ओम प्रकाश राजभर।

समरनीति न्यूज, पॉलिटिकल डेस्कः कभी-कभी आंकलन भारी पड़ जाता है और फायदे की बजाय नुकसान भी हो जाता है। ऐसा ही कुछ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के साथ हुआ है। विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर जीत हासिल करने वाले राजभर को लगा कि लोकसभा चुनाव में भी वह कुछ करिश्मा करेंगे। अति आत्मविश्वास में आकर भाजपा से बैर कर बैठे और जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। 2017 विधानसभा चुनाव से लोकसभा 2019 परिणाम तक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर चर्चा में रहे।

योगी सरकार को जमकर था रुलाया  

अपने बयानबाजी से उन्होंने योगी सरकार को जमकर रुलाया। कभी बेटे के लिए मंत्री पद तो कभी खुद के लिए बंगला को लेकर चर्चा में रहे। लोकसभा चुनाव करीब आया तो संसदीय सीट को लेकर बीजेपी अध्यक्ष के सामने तन गए। बात नहीं बनी तो अलग भी हो गए और अपनी ताकत दिखाने के लिए 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। चुनाव परिणाम सबके सामने है। राजभर ने भी मोदी की सुनामी की कल्पना नहीं की होगी।

अब भी कोर वोटर पर भरोसा बरकार

जिस कोर वोटर के भरोसे सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भाजपा से बगावत किए, उसमें वह कामयाब रहे। चुनाव में वह कुछ खास तो नहीं कर पाए लेकिन उनके कोर वोटर उनके साथ रहे। 33 सीटों पर उनके उम्मीदवार मैदान में थे और उनके उम्मीदवारों को ठीक-ठाक वोट मिले। कई सीटों पर उनके उम्मीदवारों को 40 हजार तक वोट मिले है। यह तय है कि राजभर के ये कोर वोटर विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।

ओम प्रकाश राजभर।

भारी पड़ सकती है राजभर को बगावत  

2017 में बीजेपी की सहयोगी दल के रूप में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा और चार सीटों पर जीत हासिल की। विधानसभा जीतने के बाद सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का हौसला बुलंद हो गया। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा की भांति करिश्मा दिखायेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बीजेपी से बगावत राजभर को भारी पड़ गया।

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दरअसल जनता का मिजाज राजभर भी नहीं समझ पाए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि एक बार मोदी का जादू चलेगा। बीजेपी इतने लंबे समय तक राजभर के नखरे बर्दाश्त करती रही तो उसका सबसे बड़ा कारण था राजभर वोट। पूर्वांचल में लोकसभा की करीब 26 ऐसी सीटें हैं, जहां राजभर बिरादरी की 50 हजार से लेकर दो लाख तक की आबादी है। सरकार में शामिल होने के बाद ओमप्रकाश राजभर ने इन क्षेत्रों में कम से कम अपनी इतनी हैसियत तो बना ही ली है कि उनकी आवाज पर सियासी नफा-नुकसान हो सकता है। इसीलिए बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहती थी।

ओपी राजभर का राजनीतिक सफर  

2002 में गठित सुभासपा का पहली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में खाता खुला था। पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर खुद पहली बार विधायक चुने गए थे। 2017 में भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा की 8 सीटों पर चुनाव लडऩे वाली सुभासपा के 4 विधायक चुने गए थे। इनमें ओमप्रकाश खुद गाजीपुर की जहूराबाद सीट से चुनाव जीते थे। त्रिवेणी राम भी इसी जिले की जखनिया और कैलाशनाथ सोनकर वाराणसी की अजगरा व रामानंद बौद्घ कुशीनगर की रामकोला सीट से विधायक चुने गए थे। इनमें राजभर को छोड़कर तीनों विधायक अनुसूचित जाति के हैं।

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