समरनीति स्पेशलः
बांदाः बुंदलेखंड के बांदा जिले में विंध्याचल की पहाड़ियों पर 700 फीट की उंचाई पर स्थित कालिंजर का किला आज भी खुद में सैकड़ों ऐतिहासिक वीर गाथाओं, युद्धों और आक्रमणों की अनसुनी-अनकही कहानियों और शेरशाह सूरी, महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, और हुमायू जैसे आक्रांताओं के किस्से खुद में समेटे हुए हैं। किले के चप्पे-चप्पे से आज भी युद्ध, कला और धर्म के अवशेषों को महसूस किया जा सकता है।
10वीं शताब्दी तक कालिंजर दुर्ग यहां के कई राजवंशों के अधीन रहा
इतिहास बताता है कि सामरिक दृष्टि से कालिंजर का यह ऐतिहासिक दुर्ग काफी महत्वपूर्ण रहा है। इतिहास में आज भी चंदेलकालीन राजाओं का यह किला भारत में सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है।
किले के सात द्वार इसकी सामरिक महत्ता को बताते नजर आते हैं। किले के इतिहास पर नजर डालें तो यह किला प्राचीन काल में जेजाकभुक्ति (जय शक्ति चंदेल) राजाओं यानी राजाओं के अधीन था। इसके बाद 10वीं शताब्दी तक दुर्ग यहां के कई राजवंशों जैसे चंदेल राजपूतों के अधीन रहा। फिर रीवा के सोलंकी राजाओं ने इसपर राज किया।
इन राजाओं के शासनकाल में ही कालिजंर पर मुगल आक्रांताओं ने अनगिनत आक्रमण किए। जैसे महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेरशाह सूरी और हुमायू जैसे विदेशी आक्रमणकारी यहां आकर किले को जीतने से लिए सैकड़ों आक्रमण किए। लेकिन किले पर जीत पाने में हमेशा असफल रहे। काफी कोशिशों के बाद मुगल बादशाह अकबर ने आखिरकार इसे जीता।
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जानकार बताते हैं कि 1569 में किला जीतने के बाद अकबर ने इसे अपने नौ रत्नों में एक बीरवल को उपहार स्वरूप दे दिया था। फिर मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों में आ गया। अंततः यह कालिंजर का किला अंग्रेजों के अधीन हो गया था।
आकर्षण का केंद्र हैं किले के सात द्वार
किले के सात द्वारों की बनावट और इनकी मजबूती देखते बनती है। किले को देखने से लगता है कि यहां आक्रमण के वक्त बचने और दुश्मनों को सबस सिखाने की सारी व्यवस्था की गई थी। अब यही सात द्वार पर्यटरों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सात द्वारों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं।
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- प्रथम द्वार – सिंह द्वार कहलाता है। यही किले का मुख्य द्वार है।
- दितीय द्वार – गणेश द्वार कहलाता है।
- तृतीय द्वार – चंडी द्वार कहलाता है।
- चौथा द्वार – स्वर्गारोहण द्वार या बुद्ध द्वार कहलाता है।
- पांचवा द्वार – हनुमान द्वार कहलाता है जो बहुत ही कलात्मक द्वार है।
- छठा द्वार – लाल द्वार है जिसके पश्चिम में हम्मीरकुंड है।
- सातवां द्वार – किले का अंतिम द्वार है जिसे नेमि द्वार भी कहते हैं। इस द्वार को महादेव द्वार बी कहते हैं।
कालिंजर किले में बना नीलकंठ भगवान का सुप्रसिद्ध मंदिर।
आस्था का अद्भुत केंद्र हैं किले में बना नीलकंठ भगवान महादेव का मंदिर
किले के पश्चिमी भाग में बना कालिंजर के अधिष्ठाता देवता, नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर सदियों से राजाओं-महाराजाओं के बाद आज भी हजारों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर की दिवारों और मुख्य द्वार पर वास्तुशिल्प की दृष्टि से अनोखी कृतियां बनी हैं। मंदिर के सामने एक मंडप बना हुआ है।
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मंदिर के प्रवेश द्वार पर परिमाद्र देव नामक चंदेल शासक रचित शिव स्तुति अंकित है। मंदिर के अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के उपर एक प्राकृतिक जलश्रोत है जो कभी नहीं सूखता है।
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इस श्रोत से शिव का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है। इसकी खासियत यह है कि जब आसपास पूरे बुंदेलखंड में सूखा पड़ जाता है तब भी यह श्रोत नहीं सूखता है।
चंदेली राजपूत ही होते हैं इस मंदिर में पुजारी
मंदिर की खासियत यही भी है कि यहां पुजारी भी चंदेलकालीन राजपूत ही होते आए हैं। यहां किसी ब्राह्मण को पूजा का दायित्व नहीं सौंपा गया। जानकारों की माने तो इस मंदिर में सदियों से हमेशा चंदेलकालीन राजपूत ही पुजारी रहे हैं।
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मंदिर के समय से ही यह परंपरा बनी रही है जो लगातार जारी है।पुजारी बताते हैं कि भगवान शिव की मूर्ति के कंठ का क्षेत्र स्पर्श करने से वह सदा ही मुलायम महसूस होता है। यही इसकी खासियत भी है।
धार्मिक आलेख बताते हैं हर युग में अलग नाम रहे
- सतयुग में कीर्तीनगर
- त्रेतायुग में मध्यगढ़
- द्वापरयुग में सिंहलगढ़
- कलियुग में कालिंजर
विश्व धरोहर के रूप में उभारने के प्रयास
इस किले को विश्वधरोहर के रूप में उभारने में सरकारों की कोई दिलचस्पी नहीं रही। यही वजह है कि किला वर्षों से उपेक्षा का शिकार रहा है जबकि किले के आसपास के ऐतिहासिक स्थान विश्व में प्रसिद्ध पर्यटक केंद्रों के रूप में जाने जाते हैं।
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हाल ही में यूपी की योगी सरकार ने किले को नई पर्यटन नीति 2018 के तहत तैयार कार्ययोजना में शामिल किया है। सरकार किले को पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित करने की बहुत जल्द पहल करने वाली है। स्थानीय स्तर पर कई समाजसेवी इस दिशा में प्रयासरत रहे हैं।
कैसे पहुंचें कालिंजर..
कालिंजर पहुंचने के लिए यूपी के बुंदेलखंड के बांदा जिला मुख्यालय पहुंचे। वहां से दक्षिण-पूर्व दिशा में करीब 55 किमी की दूरी पर यह किला है। बांदा से सड़क मार्ग से नरैनी, गिरवां होते हुए कालिंजर पहुंचा जा सकता है। इसके आसपास भी कई पर्यटक स्थल हैं। यहां से तुलसीदास का धर्म क्षेत्र चित्रकूट 78 किमी दूर है जबकि संगम नगरी इलाहाबाद 205 किमी है। विश्व धरोहर खजुराहो की दूरी कालिंजर से दूरी 105 किमी है।