Thursday, April 25सही समय पर सच्ची खबर...

मुंबई में बुंदेली प्रतिभा के झंडे गाढ़ रहे शिवा और ‘मास्साब’

समरनीति स्पेशलः   

फिल्म मास्साब की पोस्टर फोटो।

बुंदेलखंड के एक छोटे से गांव खुरहंड के रहने वाले शिवा सूर्यवंशी की लिखी कहानी और उनके अभिनय से भरी-पूरी फिल्म मास्साब रिजीलिंग से पहले ही सफलता के झंडे गाड़ रही है। फिल्म को अबतक कई अबार्ड मिल चुके हैं। इस फिल्म की प्रेरणा शिवा को बुंदेलखंड के सामाजिक परिवेश से ही मिली। इसके बाद उन्होंने फिल्म बनाने की ठानी और आखिरकार सफलता हासिल की। शिवा वर्तमान में मुम्बई में फिल्मों और रंगमंच में सक्रिय हैं। एक कलाकार के तौर पर मास्साब उनकी पहली हिन्दी फिल्म है। हालाँकि इससे पहले वह अंग्रेज़ी फिल्मों में हीरो की भूमिका निभा चुके हैं। शिवा सूर्यवंशी अभिनय के अलावा लेखन में भी रूचि रखते हैं और मास्साब उनकी खुद की लिखी कहानी है। हमने फिल्म के हीरो शिवा से बातचीत की। आइये समझते हैं पूरी कहानीः  

बांदा और चित्रकूट के सुदूर ग्रामीण इलाकों में बनकर तैयार हुई है फिल्म मास्साब  

मास्साब  की शूटिंग लगभग दो साल पहले बुंदेलखंड में ही हुई थी। यह फिल्म पूरी तरह से बांदा और चित्रकूट के गांवों में बनकर तैयार हुई है। इसकी शूटिंग नवंबर से दिसंबर 2016 तक बांदा के खुरहंड, बड़ोखर, कालिंजर, अतर्रा, बिलगांव के अलावा चित्रकूट जिले के गांवों में हुई है। यही वजह है कि मास्साब में वास्तविक लोकेशन दिखाई दी है। यही वजह है कि फिल्म वास्तविकता के एकदम नजदीक नजर आती है।

मास्साब फिल्म की शूटिंग को देखने को उमड़ी भीड़। (फाइल फोटो)

सरकारी स्कूलों की व्यवस्था की सच्चाई से मेल खाती है कहानी

फिल्म का शीर्षक मास्साब, दरअसल, मास्टर साहब का छोटा रूप है। यह बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा बोला जाता है। यह भारत की प्राथमिक शिक्षा पर आधारित एक अनूठी फिल्म है। प्राथमिक शिक्षा प्रथम सीढ़ी मानी जाती है और सभी जानते हैं कि देश की सरकारी शिक्षा प्रणाली, खासकर बुंदेलखंड, यूपी के गांवों के स्कूलों में कितनी खामियां हैं।

ये भी पढ़ेंः बुंदेलखंड में होता है महिलाओं का अनोखा दंगल, जहां घूंघट वालियां दिखाती हैं कुश्ती में दम-खम

इन्ही खामियों की वजह से माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ना भेजकर प्राइवेट स्कूलों में भेजना ज्यादा ठीक समझते हैं। भले ही इसके लिए उन्हें क़र्ज़ ही क्यों न लेना पड़े। यह फिल्म शिक्षा व्यवस्था की इन्हीं खामियों को उजागर करती नजर आएगी।

बेस्ट एक्टर का अवार्ड लेते शिवा सूर्यवंशी।

कई अवार्ड जीत चुकी मास्साब , कई और जीतने की तैयारी  

मास्साब अभी रिलीज नहीं हुई है लेकिन इसके चर्चे फिल्मी दुनिया में अभी से तेज हैं। फिल्म ने अबतक कई अवार्ड भी जीत चुकी है। खुद शिवा सूर्यवंशी ने बताया है कि जनवरी 2018 में जयपुर में आयोजित राजस्थान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में फिल्म को दो महत्त्वपूर्ण अवार्ड मिले। पहला बेस्ट फिल्म क्रिटिक के लिए। और दूसरा अवार्ड बेस्ट एक्टर के लिए खुद शिवा को।

ये भी पढ़ेंः सुरीली आवाज की बदौलत सफलता की बुलंदियों पर सीतापुर की आयुषी

मार्च 2018 में नासिक में आयोजित दादासाहब फाल्के नासिक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में गोल्डन कैमरा अवार्ड, बेस्ट हिन्दी फिल्म के लिए मास्साब चुनी गई है। 25 मई से  27 मई 2018 रांची में आयोजित झारखंड अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में स्पेशल ज्यूरी अवार्ड व बेस्ट हिन्दी फीचर फिल्म का अवार्ड मिल चुका है। खास बात यह है कि फिल्म मास्साब को इसी महीने अमेरिका के फ्लोरिडा में आयोजित होने वाले कॉस्मिक फिल्म फेस्टिवल में चुना गया है और इसकी स्क्रीनिंग 17 जून को होनी है।

सामाजिक बुराइयों से नायक के संघर्ष का शानदार चित्रण   

फिल्म के हीरो  शिवा ने बताया कि कान्स फिल्म समारोह के निदेशक बेंजामिन इलोस ने फिल्म देखकर कहा कि “इस फिल्म में ऐसे कई क्षण हैं जो बांधकर रखते हैं और मुझे फिल्म का कॉमिक टोन(मनोरंजक सुर) पसंद आया। मुझे उम्मीद है कि ये फिल्म दर्शकों के एक बड़े वर्ग को पसंद आयेगी।” शिवा कहते हैं कि मास्साब कई बड़े फिल्म समारोहों में शिरकत करेगी। उसके बाद ही रिलीज़ की तैयारी होगी।

फिल्म मास्साब की शूटिंग के दौरान बाल कलाकारों की टीम।

इस फिल्म  का नायक आशीष कुमार है जो एक आईएएस अधिकारी की नौकरी छोड़कर गांव में शिक्षक की नौकरी करता है और उसका जुनून गांवों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनका भविष्य संवारना है लेकिन जब वह गांव पहुंचता है तो उसका सामना गांवों में फैली तमाम सामाजिक बुराइयों से भी होता है।

ये भी पढ़ेंः वीर गाथाओं की बुनियाद पर खड़ी ऐतिहासिक धरोहर है बांदा का अपराजित कालिंजर किला

जैसे छुआछूत, भ्रष्टाचार और काम के प्रति साथी शिक्षकों की कर्तव्यहीनता। फिल्म में आशीष कुमार कुरितियों से घिरी शिक्षा व्यवस्था से कैसे लड़ता है और इस लड़ाई में उसे जीत मिलती है या नहीं। यही फिल्म का विषय है। इस फिल्म की कहानी खुद शिवा की है और निर्देशन आदित्य ओम ने किया है।

माता-पिता संग फिल्म के हीरो शिवा।

अंग्रेजी फिल्मों में एक्टिंग और डायलाग लिख चुके हैं शिवा 

मास्साव के अलावा शिवा ने स्क्रीन प्ले और डायलाग लिखे हैं। इनमें Drop,  Even this Will  paas away, that thou art  आदि प्रमुख हैं। फिल्मों के अतिरिक्त उन्होंने कई नाटक भी लिखे हैं और उनमें अभिनय भी किया है। शिक्षक परिवार से जुड़े शिवा के पिता लाल बहादुर सिंह रिटायर्ड प्रधानाचार्य हैं और माता रोहिणी एक गृहिणी हैं। दो बड़े भाई भी शिक्षक हैं। शायद यही वजह है कि शिवा ने शिक्षा व्यवस्था की खामियों पर फिल्म बनाने की सोची।