वरिष्ठ पत्रकार राज बहादुर सिंह
की कलम से..
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अकबर इलाहाबादी। एक ऐसा महबूब शायर जिसके बारे में यह तय कर पाना मुश्किल है कि वह रोमांटिक शायर ज्यादा हैं या तंज करने वाले एक विटी क़लमकार। उनका नाम अकबर हुसैन रिजवी था और जन्म 16 नवम्बर 1846 को हुआ था और जैसा नाम से जाहिर है जन्मस्थली इलाहाबाद रही और कर्मस्थली भी रही।
आप बीए पास हैं तो बंदा बीबी पास है..
अकबर साहब copyist रहे फिर reader रहे, तहसीलदार रहे और आखिर में मुंसिफ बने। इस दौरान शायरी का सफर जारी रहा। कुछ बानगी देखिए। एक साहब मिलने आए और पर्ची भेजी जिस पर लिखा था बीए पास। अंदर से अकबर साहब ने पर्ची पर लिखकर यह जवाब भेजा-
शेख जी निकले न घर से और ये फरमा दिया
आप बीए पास हैं तो बंदा बीबी पास है।
सियासत पर तंज देखिए-
कौम के गम में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
तंज की एक और बानगी-
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
लो आज हम भी साहिबे औलाद हो गए
और अगर बात रोमांस की करें तो एक नजर इस पर भी-
किस नाज से कहते हैं वो झुंझला के शबे वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
या फिर यह सदाबहार शेर
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।
या फिर-
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है।
तमाम तकलीफों से भी गुजरना पड़ा अकबर साहब को और आखिरकार 75 साल की उम्र में 15 फरवरी 1921 को इस फानी दुनिया से रुख्सत हो गए। एक इंतिहाई टैलेंटेड बहुमुंखी शायरी के दस्तखत को उनकी सालगिरह पर हजारों सलाम-
हर जर्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर सांस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है
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