समरनीति न्यूज, बांदाः कहा जाता है कि जहां पीढ़ियों के रिश्ते जज्बातों की डोर से बंदे होते हैं, वहां इंसानियत की जड़ें भी बहुत गहराई तक होती हैं। बुंदेलखंड के बांदा जिले में आज यह बात सच साबित होती नजर आई। शनिवार को देश की सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या मामले में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सरकारें अमन-चैन को लेकर चिंतित थीं, पुलिस और सुरक्षा बल सड़कों पर उतरकर स्थिति पर नजर रख रहे थे तो वहीं बांदा में सबकुछ शांत और रोजमर्रा की तरह चल रहा था। बल्कि, शहर के मुख्य बाजार में मन्नी चाय वाले की दुकान के पास रोज से कहीं ज्यादा आपसी सोहार्द नजर आया।
आपसी सौहार्द को बड़ा मानते हैं पीढ़ियों से जुड़े लोग
जहां विश्व हिंदू परिषद-बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं के साथ जामा मस्जिद के मुतवल्ली और दूसरे मुसलिम समाज के नेता साथ-साथ बैठे हंसी-ठिठौली करते नजर आए। आज के फैसले से बेखबर से नजर आने वाले इन लोगों की आपसी बातचीत में हंसी के गुब्बारे फूट रहे थे। खिल-खिलाते हुए एक-दूसरे से पुराने किस्से साझा हो रहे थे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रद्युम दुबे ‘लालू भइया’ से जब बात हुई तो उनका कहना था कि रात से ही इस बात की जानकारी थी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला शनिवार को आएगा। इसलिए मन में कहीं न कहीं आपसी रिश्तों को लेकर एक हल्की सी सुगबुगाहट भी थी, फिर थोड़ा रुकते हुए लालू भइया कहते हैं, कि हम पीढ़ियों से जुड़े लोग हैं, फैसलों का हमारे रिश्तों पर कोई असर पड़ता नहीं है। हम सब यही सोचते हैं कि अपनों को कोई तकलीफ न पहुंचे, मन में कोई टीस न हो।
फैसले से बेखबर से आए नजर, खूब हुई हंसी-ठिठोली
यही वजह थी कि कल ही सोच लिया था कि सुप्रीमकोर्ट का फैसला कुछ भी हो, रोज की तरह मिलेंगे और साथ बैठकर चाय पिएंगे। ईद की सिवइयां और दशहरे का पान साथ खाते हैं तो आज चाय के साथ पुरानी यादें ताजा की जाएंगी। बस, आज सभी साथी साथ-साथ बैठे। लालू भइया ने बताया कि अपने बचपन के साथी बांदा के जमींदार खानदान के बेटे एवं जामा मस्जिद के मुतवल्ली सादी जमां खां से आज सुबह बात हुई। वह मिलने चले आए। कुछ देर बाद नईम भाई और बाकी लोग भी आ गए।
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फिर सभी मन्नी की चाय दुकान के पास इकट्ठा हुए। वहां पास में विश्व हिंदू परिषद के प्रदीप श्रीवास्तव, बीजेपी नेता द्वारिका सोनी, पूर्व चेयरमैन राजकुमार राज, नईम नेता, अरुण तिवारी, वीरेंद्र साक्षी भी आ पहुंचे। सभी साथ-साथ बैठे। चाय पी गई और फिर पुराने किस्से याद करते हुए हंसी-ठिठोली हुई। इस दौरान सभी ने कहा कि ‘हम लोगों के रिश्ते आज के नहीं, बल्कि बीती कई पीढ़ियों के रिश्ते हैं।’ अमित सेठ भोलू का कहना था कि हमारी पहली पीढ़ी भी एक-दूसरे से इसी आत्मीयता से मिलती थी। हमारे बड़े भी अच्छे दोस्त थे और यह सिलसिला चलता आ रहा है। यही वजह है कि यहां ऐसे फैसलों का कोई असर देखने को नहीं मिलता है। यहां लोग आपसी रिश्तों को ज्यादा महत्व देते हैं।
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