समरनीति न्यूज, कानपुरः शहर के बड़े साहित्यकार एवं पहला गिरमिटिया के लेखक, पद्मश्री से सम्मानित लेखक-साहित्यकार गिरिराज किशोर का रविवार सुबह निधन हो गया। मूल रूप से पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर के रहने वाले 83 साल के गिरिराज किशोर बाद में कानपुर के सूटरगंज में बस गए थे। उनके निधन की खबर मिलते ही पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। सोमवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। साहित्य जगत में उनके निधन से दुख है। सभी ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए दुख व्यक्त किया है।
ह्रदय गति रुकने से हुआ निधन
बताया जाता है कि पद्मश्री गिरिराज जी का रविवार को हृदय गति रुकने से देहांत हो गया है। उन्होंने अपना देह दान किया हुआ था, इसलिए अंतिम संस्कार सोमवार को सुबह 10 बजे किया जाएगा। वह अपने पीछे परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा छोड़ गए हैं।
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बताते हैं कि करीब 3 माह पहले वह गिर गए थे। इससे उनको कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया था। तभी से उनकी तबियत लगातर खराब चल रही थी। साहित्य के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान को कभी भूला नहीं जा सकता है। वह हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार और नाटककार होने के साथ-साथ उपन्यासकार भी थे।
कानपुर आईआईटी में रह चुके थे कुलसचिव
उनका 1991 में प्रकाशित उपन्यास ढाई घर काफी लोकप्रिय हुआ था। बाद में इसे 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। उनका पहला उपन्यास पहला गिरमिटिया था जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास के उपर आधारित था। वह आईआईटी कानपुर में कुलसचिव भी रहे थे। उनका जन्म 8 जुलाई 1937 को मुजफ्फरनगर में हुआ था। कहा जाता है कि मुजफ्फरनगर के एसडी कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह घर से मात्र 75 रुपए लेकर प्रयागराज आ गए थे। बताते हैं कि वह जुलाई 1966 से लेकर 1975 तक कानपुर यूनिवर्सिटी में सहायक और उपकुल सचिव रहे थे। इसके साथ ही 1975 से 1983 तक आइआइटी कानपुर में भी कुलसचिव के पद पर कार्यरत रहे।
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