समरनीति न्यूज, डेस्कः सोशल मीडिया के जमाने में आज इंसानी रिश्ते आन लाइन सिमटकर रह गए हैं। भागम-भाग भरी जिंदगी में लोग रिश्तों न वक्त दे पा रहे हैं और न ही ठीक से निभा पा रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि रिश्तों की डोर कमजोर पड़ चुकी है, लेकिन आज भी जानवर रिश्तों को पूरी सिद्धत और ईमानदारी से निभा रहे हैं। फिल्मों में हाथी, कुत्ते और सांप के इंसानों से रिश्ते निभाने की कहानियां तो आपने खूब देखी और सुनी होंगी, लेकिन इंसान और जानवर के बीच गहरे रिश्ते का एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
निसंतान सेवानिवृत शिक्षक ने बंदर को बेटे की तरह रखा
जी हां, एक बंदर का अपने मालिक के प्रति इतना समर्पण कि उनके देहांत से चंद दिन पहले जंगल से 20 किमी दूरी पार करके घर लौटता है। फिर उनके निधन के साथ ही पास में सिर रखकर लेट जाता है और कुछ ही पल में प्राण त्याग देता है। फिल्मों जैसी यह कहानी फतेहपुर जिले में सच्ची घटना पर आधारित है, जो इस वक्त क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी है।
सोनू रखा था बंदर का नाम, साथ पढ़ाते-साथ खाना खिलाते
दरअसल, फतेहपुर जिले के किशनपुर के मोहल्ला पाखरतर में एक सेवानिवृत शिक्षक शिवराज सिंह (75) अपनी पत्नी शांति देवी के साथ रहते थे। वह निसंतान थे, लेकिन जीवों से बहुत प्यार करते थे। ऐसे में वह कहीं से एक बंदर का बच्चा ले आए। इसके बाद उसे बेटे की तरह पालने लगे। उनहोंने बंद के बच्चे को सोनू नाम दिया। फिर बेटे की तरह ही उसकी देखभाल करते, खाना खिलाते और व्यवहार भी करते थे। पत्नी का कुछ समय बाद निधन हो गया।
पत्नी के निधन के बाद बीमार हुए, सोनू को जंगल भिजवाया
जैसे-जैसे समय गुजरता गया, बंदर का बच्चा बड़ा होता गया और सेवानिवृत शिक्षक बीमार रहने लगे। सोनू भी अपने मालिक से इतना लगाव करता था कि अगर कोई उनके तेज आवाज में बात करता तो सोनू उसपर हमला तक कर देता था। इसे लेकर मुहल्ले के लोगों ने ऐतराज जताया। हालांकि, वृद्ध शिवराज का सोनू के प्रति स्नेह और दुलाह बरकरार रहा।
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वह रोजाना उसे कभी पढ़ाते तो कभी साथ बिठाकर खाना खिलाते थे। इधर, मुहल्ले के बच्चे सोनू को छेड़ने लगे तो उसने उनपर हमला करना शुरू कर दिया। मुहल्ले के लोगों के ऐतराज के बाद शिवराज ने भारी मन से सोनू को लगभग 8 महीने पहले खागा के जंगलों में छुड़वा दिया। शिवराज सिंह की जिंदगी इसी तरह बीमारियों के बीच गुजर रही थी।
चार दिन पहले जंगल से लौटकर घर आ गया था सोनू
सोनू के जाने से वह अकेले पड़ गए थे, लेकिन इसी को उन्होंने नियति मान लिया था, लेकिन मुहल्ले के लोग और खुद शिवराज उस वक्त चौंक गए जब देखा कि चार दिन पहले सोनू (बंदर) किसी तरह अपना ठिकाना तलाशते-तलाशते वापस किशुनपुर में घर लौट आया। वह अपने मालिक के पास ही रहता और खाता। बताते हैं बीते मंगलवार यानि 11 फरवरी की शाम वयोवृद्ध शिवराज और बंदर सोनू के साथ बैठे फल खा रहे थे।
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बताते हैं कि इसी बीच अचानक वृद्ध शिवराज के सीने में तेज दर्द उठा। परिवार के लोग मदद के लिए दौड़कर पहुंचे, लेकिन कुछ देर बाद उनका निधन हो गया। परिवार के लोगों में कोहराम मच गया। महिलाएं रोने-बिलखने लगीं। परिजनों के विलाप और चीख-पुकार के बीच सोनू भी अपने मालिक से चिपककर बैठ गया और फिर लिपट गया।
मालिक के शव के पास सिर झुकाकर बैठा, फिर प्राण त्यागे
काफी देर तक सोनू के भी शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो मौजूद लोगों ने उसे हिलाया-डुलाया। सोनू फिर भी नहीं हिला-डुला। लोग यह समझकर हैरान थे कि सोनू ने भी अपने मालिक के निधन के सदमे में प्राण त्याग दिए हैं। बुधवार को परिजनों ने दोनों के शवों का पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार किया। दोनों की शव यात्राएं भी निकाली। मालिक और बंदर सोनू के बीच इस अजीब रिश्ते को देखकर हर किसी की आंखें नम थीं और दिल भारी।
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